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દરર
• पार्श्वनाथ-चरित्र रखना या भोग सुख प्राप्त करनेके लिये शंखेश्वरादि देवताओंकी मानता-मिन्नत करना।
विचिकित्सा-धर्मविषयक फलके सम्बन्धमें सन्देह करना या देव, धर्म और गुरुकी निन्दा करना ।
पर प्रशंसा-अन्य दर्शनीयोंकी प्रशंसा करना। पर परिचय-अन्य दर्शनीयोंसे विशेष परिचय करना।
श्रावकोंको इन पांच अतिचारोंसे रहित सम्यक्त्वका पालन करना चाहिये।
बारह व्रतोंमें सर्वप्रथम अणुव्रत प्राणातिपात विरमणका पालन करना चाहिये। श्रावकोंमें सवा विश्वा दया बतलायी गयी है। क्योंकि स्थूल और सूक्ष्म जीवोंकी हिंसा संकल्प और आरंभ दो प्रकारसे होती है। उसके भी सापराधिनी और निरपराधिनी एवम् सापेक्षिता पूर्वक और निरपेक्षिता पूर्वक—यह दो-दो भेद हैं । इन भेदोंका ज्ञान गुरुमुखसे प्राप्त करना चाहिये । प्रथम अणुव्रतके यह पांच अतिचार त्याग करने योग्य हैं।
वध-मनुष्य और पषुओंको निर्दयता पूर्वक लकड़ी आदिसे मरना। बन्ध-पषु एवं मनुष्योंको कड़ाईके साथ बांधना। छविच्छेद-पशुओंके कान नाक आदि छेदना। अतिभार—ज़ियादा भार लादना।
भक्तपान विच्छेद-पशुओंको यथा समय चारा पानी आदि न देना।