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• सप्तम सर्ग.
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दुर्विनीतका यह प्रस्ताव सुनकर सुविनीतने कहा-“ऐसे सुन्दर पक्षियोंको मार डालना ठीक नहीं। इन्हें फलोंका प्रलोभन दिखा कर पकड़ लेना चाहिये। यह सुन दुर्विनीतने सुविनीतकी बात मान ली । अतः वह तुरत अंगूरकी एक गौद ले आया और पाशके साथ उसे बांध कर वृक्षपर चढ़ने लगा। यह देखकर शुकने कहा,-"प्रिये ! हम लोगोंको पकड़ने के लिये यह वृक्ष पर चढ़ रहा है किन्तु इसका मनोरथ किसी भी अवस्थामें पूर्ण नहीं हो सकेग। इसका कारण यह है कि यह बायीं आंखसे काना है।
और इधर वृक्षके एक कोटरमें बायीं ओर पीणिक नाग बैठा हुआ है। काना होने के कारण न तो वह उसे हो देख सकता है, न हमें ही। इसीलिये मैं कहता हूं कि वह हमें पकड़ नहीं सकता।"
शुकोने कहा,-"नाथ ! आप बुद्धिमान हैं। आप जो कहते हैं वह ठीक ही है, किन्तु मुझे अंगूर खानेका दोहद उत्पन्न हुआ है। यदि आप मुझे अंगूर न ला देंगे और मेरी यह इच्छा पूर्ण न करेंगे, तो मेरे लिये जीना कठिन हो जायगा।
शुकने कहा, "प्रिये ! अंगूरके साथ इस समय पाश बंधा हुआ है, इसलिये अभी अंगूर लाना कठिन है। यह काना जब कोटरके पास पहुंचेगा, तब नाग इसका श्वास भक्षण कर लेगा।उस समय वह मृतप्राय हो पड़ेगा और अंगूर लाना भी सहज हो जायगा।
शुककी यह बात सुन कर शुको चुप हो गयी। कुछ ही समय में दुर्विमीत वृक्षके उस कोटरके पास जा पहुंचा। वहां पहुंचते.