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* पार्श्वनाथ-चरित्र - ही पीणिक नाग कोटरसे बाहर निकला और दुर्विनीतका श्वास खींच लिया। इससे दुर्विनीत वृक्षकी एक शाखा पर मुर्देको तरह लटक गया और पीणिक नाग भी मानुष-विषके प्रयोगसे अचेतन होकर वहीं पड़ा रहा। दोनोंके बेहोश हो जानेपर वह शुक अंगूरोंके पास पहुँचा और चंचु-घातसे पाशको छेद कर अंगूर ले आया। इसी तरह कई बार उसने अंगूर ला लाकर शुकीको दिये और शुकीकी इच्छा पूर्ण की। इसके बाद दोनों पारस्परिक प्रेमके कारण आनन्द-विमोर हो गये।
इसी समय कनककी निगाह दुर्विनीत पर जा पड़ी। उसने देखा कि वह मुर्देकी तरह अचेतन हो रहा है। यह देख कर वह विरह व्याकुल हो करुण कन्दन करने लगा। वह कहने लगा“अहो! यह संसार कैसा विचित्र है। किसी कविने ठीक ही कहा है कि हे भगवन् ! यदि संभव हो, तो हमें जन्म ही मत देना, यदि जन्म देना तो मनुष्यका जन्म मत देना, यदि मनुष्यका जन्म देना, तो प्रेम मत देना और यदि प्रेम देना तो वियोग मत कराना। अहो ! यह हृदय मानो वज्रसे बना है इसीलिये वज्रके समान कठोर है। यदि ऐसा न होता तो प्रिय पुत्रका वियोग होनेपर वह टूक-टूक क्यों न हो जाता ? जिस प्रकार जलके वियोगसे कीचड़का हृदय विदीर्ण हो जाता है, उसी तरह यदि सञ्चा प्रेम हो, तो मनुष्यका हृदय भी विदीर्ण हो जाना चाहिये।
इस प्रकार कनक बहुत देरतक विलाप करता रहा। इसके बाद उसने उस शुककी ओर देखकर कहा,-"हे शुक! तुझे