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* सप्तम सर्ग *
करण तैयार रखना (५) भोगोपभोग वस्तुओं की तीव्र अभिलाषा रखना और भोगातिरिक्त चीजें तैयार रखना ।
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अब मैं चार शिक्षा व्रतों का वर्णन करता हूं। इनमेंसे प्रथम का नाम सामायिक व्रत है । इसके पांच अतिचार यह है-( १ ) मनमें आर्तध्यान और रौद्रध्यानका चिन्तन करना ( २ ) वचनसे सावद्य बोलना ( ३ ) कायासे सावध करना अर्थात् अप्रमार्जित भूमिपर बैठना ( ४ ) अनुपस्थापना -- अव्यवस्था ( ५ ) चंचल चित्तसे सामायिक करना अर्थात् सामायिकमें गप-शप
करना ।
दूसरे देशावकाशिक शिक्षाव्रतके पांच अतिचार यह है, - ( १ ) लाना ( २ ) भेजना ( ३ ) आवाज करना ( ४ ) रुप दिखाना ( ५ ) कंकड़ी डालना । छठें और दसवें व्रतमें केवल इतना ही अन्तर है कि छठां व्रत यावजोवित होता है और दसवां व्रत उसी दिन के परिमाण वाला होता है ।
तीसरे पौषधोपवाल शिक्षातत्रके पांच अतिचार यह हैं( १ ) अप्रतिलेखित या दुःप्रतिलेखित संथारेपर सोना ( २ ) अप्रमार्जित भूमिपर लघुनोति या बड़ीनीति फेंकना ( ४ ) शुद्धमनसे पौषधका पालन न करना (५) निद्रा लेना और विकथादि कहना ।
चौथे अतिथि संविभाग शिक्षाव्रतके भी पांच अतिचार हैं, यथा - (१) न देनेके विचारसे शुद्ध आहारादिकको अशुद्ध करना (५) देनेके विचारसे अशुद्ध आहारादिकको शुद्ध करना (३) अचित्त वस्तुको सचित्त वस्तुसे ढँक रखना ( ४ ) यतिजी घरपर