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षष्ठ सर्ग.
___ अब हम लोग भावधर्म पर विचार करेंगे । भाव, धर्मका मित्र है। कर्मरूपी इन्धनको भस्म करनेके लिये वह अग्नि समान और सुकृत्य रूपी अन्नके लिये घृत समान है। भाव पूर्वक अल्प सुकृत करनेसे भी वह पुरुषोंको सब अर्थोकी सिद्धि प्रदान करता है। किसीने ठोक ही कहा है कि जिस तरह चूना लगाये बिना पानमें रंग नहीं आता, उसी तरह भावके बिना दान, शील, तप और जिन पूजा आदिमें विशेष लाभ नहीं होता।" भाव भ्रष्ट पुरुषोंको सर्वत्र असफलता ही प्राप्त होती है। यदि भावपूर्वक एक दिन भी चारित्रका पालन किया जाया, तो उससे सद्गतिको प्राप्ति होती है। इस सम्बन्धमें पुंडरीक और कंडरीकको कथा मनन करने योग्य है । वह कथा इस प्रकार है:- .
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पंडरीक कंडरीक कथा
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महाविदेह क्षेत्रके पुल्कलावती नामक विजयमें पुंडरीकिणी नामक एक नगरी है। वहां महापद्म नामक एक परम न्यायो राजा राज करता था। उसकी रानीका नाम पद्मावती था । वह शील, विनय, विवेक, औदार्य और चारु चातुर्य आदि गुणोंसे