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* पार्श्वनाथ चरित्र
स्थसे परिचय न रखना और रागादि प्रबल शत्रुओंको जीतना यह सब कठिन है। इन्हींके कारण चारित्र तलवारको धारके समान माना गया है । तुम्हारी अवस्था अभी बहुत छोटी है। चारित्रका पालन करना केवल भुजाओंके सहारे समुद्र पार करनेके समान है। परिषहोंका सहन करना बहुत ही कठिन है, इसलिये गृहस्थ धर्म पालन कर अभी तुम राज करो । युवावस्था व्यतीत होनेपर फिर दीक्षा ग्रहण करना यह समय तुम्हारे लिये आनन्द करनेका है, तप करनेका नहीं ।"
इस प्रकार पुंडरीकने बहुत समझाया, और मन्त्रियोंने भी बहुत मना किया, किन्तु कंडरीकके ध्यानमें एक भी बात न उतरी और उसने दीक्षा ले ही लो । पुंडरीकने बन्धुका दीक्षा महोत्सव मनाया। अब मन्त्रियोंने पुंडरीकसे कहा कि - "हे राजन् ! जब तक शासनभार ग्रहण करनेवाला और कोई तैयार न हो जाय, तबतक आपही राज कीजिये ।” दूसरा कोई उपाय न होनेके कारण पुंडकने मन्त्रियों को यह बात मान ली। वह मनमें चारित्र भावना धारण कर पूर्ववत् राज-काज करने लगा और कंडरोक मुनि तथा साधुओके साथ विचरण करता हुआ चारित्रका पालन करने लगा । इसी तरह बहुत दिन व्यतीत हो गये ।
एक बार पुष्पावती नगरीके समीप कई स्थविर मुनि एक उद्यानमें पधारे। उन्हींमें कंडरीक भी था। इनका आगमन समाचार सुन अनेक नगर निवासी इन्हें बन्दन करने गये । उन्हें देख कर कंडरीक मुनिको दुर्ध्यान उत्पन्न हुआ । उस समय