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* पार्श्वनाथ चरित्र #
विभूषित थी। उसके उदरसे शस्त्र और शास्त्र विशारद पुंडरीक और कंडरीक नामक दो पुत्रोंका जन्म हुआ था । राजा न्याय और प्रेमपूर्वक अपनी प्रजाका पालन करता था ।
एक बार नगरके बाहर नलिनीवन नामक उद्यानमें अनेक साधुओंके साथ श्री सुवताचार्य नामक गुरु महाराजका आगमन हुआ । उनका आगमन समाचार सुन राजा उनकी सेवामें उपस्थित हुआ और उन्हें प्रणाम कर उनके सम्मुख जमीनपर आसन ग्रहण किया । उस समय गुरु महाराजने उपस्थित लोगोंको मधुपदेश देते हुए कहा कि - " हे भव्य प्राणियो ! इस संसार में भ्रमण करते हुए
जीवोंके लिये मनुष्यत्व, धर्मका श्रवण, धर्मपर श्रद्धा और संयममें महावीर्य यह चार पदार्थ बहुतही दुर्लभ हैं ।" इसी प्रकार की अनेक बातें सुन राजाको वैराग्य आ गया और उसने अपने ज्येष्ठ पुत्र पुंडरीकको राज्य भार सौंपकर दीक्षा ग्रहण कर ली। इसके बाद चौदह पूर्वोका अभ्यास कर वे विविध तप करते हुए चारित्र का पालन करने लगे । अन्तमें संलेखना कर उन्होंने शरीर त्याग किया और समस्त कर्मोंको क्षीण कर निर्वाण पद प्राप्त किया ।
बहुत दिनोंके बाद फिर वही स्थविर मुनि विहार करते हुए पुंडरीकिणी नगरीमें पधारे। मुनिका आगमन समाचार सुन पुंडरीक अपने छोटे भाई और परिवारके साथ उन्हें वन्दन करने गया। गुरुदेवने भी उसे विस्तार पूर्वक धर्मोपदेश दिया । धर्मोपदेश सुनकर पुंडरीकको वैराग्य आ गया । वह तुरत ही अपनी
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