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* पाश्र्वनाथ चरित्र *
और तारागण निस्तेज हो जाते हैं। उसके चले जाने पर देवताओंने विस्मित हो सौधर्मेन्द्रसे पूछा कि - " यह देव इतना तेजस्वी क्यों मालूम होता था ?” इन्द्रने कहा – “ इसने पूर्व जन्ममें आयम्बिलवर्धमान नामक तप किया था । इसीलिये यह इतना तेजस्वी मालूम होता है । पुनः देवताओंने पूछा - "हे स्वामिन् ! क्या मनुष्य लोकमें भी कोई अधिक स्वरूपवान है ?" देवेन्द्रने कहा- “ इस समय मनुष्य लोकमें हस्ति- नागपुर नामक नगर में कुरुवंश-विभूषण सनत्कुमार चक्रवर्ती राज करता है; वह देवताओंसे भी अधिक रूपवान है । यह सुनकर सब देवताओंको बड़ा आश्चर्य हुआ | उनमें जय और विजय नामक दो देवताओंको इन्द्रकी इस बातमें कुछ अतिशयोति प्रतीत हुई अतः वे ब्रह्मणका रूप बनाकर मनुष्य लोकमें माये और द्वारपालकी आज्ञा प्राप्त कर सनत्कुमारके महलमें प्रवेश किया । सनत्कुमारको देखतेही दोनोंको विश्वास हो गया कि सौधर्मेन्द्रकी बात बिलकुल सत्य थी। उस समय सनत्कुमार चक्री तैल-मर्दन करा रहे थे । इन दोनों विप्रोंको देख कर चक्रीने पूछा“ आप लोग कौन हैं ? और यहां किसलिये आये हैं ?” ब्राह्मणोंने कहा- “हे नरेन्द्र ! हम लोग ब्राह्मण हैं । आजकल तीनों लोकमें आपके रूपकी प्रशंसा हो रही है, इसीलिये हम आपके दर्शन करने आये हैं ।”
ब्राह्मणोंके यह वचन सुनकर सनत्कुमार अपने मनमें कहने लगा - “अहा ! मैं धन्य हू, कि तीनों लोकमें मेरे रूपकी प्रशंसा हो रही है।” इसके बाद उसने ब्राह्मणोंसे कहा - " इस समय आप लोग