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* षष्ठ सर्ग:
मेरा रूप क्या देख रहे हैं। इस समय तो मैं स्नान करने जा रहा हूं। आप लोग कुछ समय ठहरिये। जब मैं स्नान कर वस्त्राभूषणसे विभूषित हो राज-सिंहासन पर बैठू तब मेरा रूप देखियेगा।" सनत्कुमारको यह बात सुनकर दोनों ब्राह्मण वहांसे अन्यत्र चले गये। सनत्कुमारने स्नानादिसे निवृत्त हो, वस्त्राभूषण धारण कर जब राज-सभामें प्रवेश किया तब उसने दोनों ब्राह्मणोंको बुला भेजा । ब्राह्मणोंको यह देख कर बहुत ही आश्चर्य हुआ, कि इतनेही समयमें राजा रोग प्रस्त हो गया था और उसका समस्त तेज नष्ट हो गया था। इससे ब्राह्मणोंको बहुत ही विषाद हुआ और उन्होंने राजासे कहा -अहो! मनुष्योंके रूप, तेज, यौवन और सम्पत्ति अनित्य और क्षणभंगुर हैं। सनत्कुमारने कहा-“आप लोग ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं ?" यह सुन ब्राह्मणोंने कहा---“हे नरेन्द्र ! देवताओंका रूप, तेज, बल और लक्ष्मी आयु पूर्ण होनेके केवल छः हो मास पहले क्षीण होते हैं, किन्तु मनुष्य के शरीरको शोभा तो क्षणमात्रमें ही विनाश हो जाती है। यह संसार हो अनित्य है। जो सुबह होता है वह दोपहरको नहीं रहता और जो दोपहरको होता है, वह रात्रिको नहीं रहता । इस संसारके समस्त पदार्थ अनित्य हैं।" ब्राह्मणोंको इस तरहकी बातें करते देख सनत्कुमारको बहुत ही आश्चर्य हुआ । उसने कहा-“हे ब्राह्मगो ! मैं आप लोगोंकी बात न समझ सका । माप जो कहना चाहते हों, वह साफ कहिये । ब्राह्मणोंने कहा-“राजन् ! क्या कहें। कुछ देर पहले जब हमलोगोंने आपको देखा, तब