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* पार्श्वनाथ चरित्र *
जितनी प्रशंसा सुनी थी, उससे कहीं अधिक रूपवान आपको पाया । किन्तु अब हम देखते हैं कि आपका समस्त तेज नष्ट हो गया है और आप नाना रोगोंसे ग्रसित हो रहे हैं। इसके लिये आपको जो करना हो, वह कर सकते हैं ।" "यह कह वे ब्राह्मण रूपी दोनों देवता स्वर्ग चले गये ।
उपदेशमालामें कहा है कि- “ क्षणमात्रमें शरीर क्षीण होने पर देवताओंके कहने से जिस प्रकार सनत्कुमार चक्रीको ज्ञान उत्पन्न हुआ, उसी प्रकार अनेक सत्पुरुषोंको अपने आप ज्ञान हो जाता है ।"
देवताओंकी बात सुन सनत्कुमारको बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने कंकण और बाजूबन्द विभूषित दोनों बाहुओंकी ओर देखा तो वे उन्हें निस्तेज मालूम हुई । हार और अर्ध हारसे विभूषित वक्षस्थल धुलिसे आच्छादित सूर्यबिम्बकी भांति शोभारहित दिखायी दिया । इसी तरह समस्त अंग प्रभा रहित देख कर वे अपने मनमें कहने लगे - " अहो ! यह संसार कैसा असार है ! मेरा रूप देखते ही देखते नष्ट हो गया। अब यहां किसकी शरण में जाया जाय ? कोई किसीकी रक्षा करनेमें समर्थ नहीं है । उन्हीं मुनिओंको धन्य है जो सर्व संगका परित्याग कर वनमें जा धर्माराधन करते हैं ।" इस प्रकार विचार करते हुए उन्हें बैराग्य हो आया अतएव उसी समय उन्होंने निःसंग हो विनयधर गुरुके निकट दीक्षा ग्रहण कर
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ली । फिर भी उनके स्त्री प्रभृति चौदह रत्न, कर्मचारी, आभियोगिक देवता और सैन्यके मनुष्य छः मास तक उनके पीछे पीछे भ्रमण करते रहे, किन्तु सनत्कुमार ने उनकी ओर आंख उठा कर देखनेकी