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* षष्ठ सगे
सुनकर उसने पूछा,-"देवी! वह स्वप्न-सूचित मेरा भाई कहां है !" सुव्रताने कहा, "हे वत्स! जिस बनमिराजाने तेरे नगरको घेर रखा है, वही तेरा वह भाई है।"
माताको यह बात सुनकर चन्द्रयशाके आनन्दका वारापार न रहा। वह उसो समय नेमिराजाको भेटनेके लिये चल पढ़ा। जब यह समाचार नेमिराजाने सुना, तो वह भी सम्मुख चलकर मार्गमें ही चन्द्रयशासे आ मिला। दोनों जन एक दूसरेके गलेसे चिपट गये। उनका वह प्रेम-मिलन संसारमें एक देखने योग्य वस्तु थी।
भेंट होनेके बाद चन्द्रयशाने बड़े समारोहके साथ नमिराजाको अपने नगरमें प्रवेश कराया। इसके बाद उसने आंखोंसे आंसू गिराते हुए नमिराजासे कहा-“हे वत्स ! पिताकी मृत्यु देखनेके बादसेही मुझे राज्यसे विरक्ति हो गयी है; किन्तु इस गुरुतर भारके उठानेवालाका अभाव होनेके कारण मुझे इच्छा न होते हुए भी यह भार उठाना पड़ा। अब तू इस भारको स्वीकार कर। इस प्रकार नमिको समझा बुझा कर चन्द्रयशाने अपना राज्य भी उसीको सौंप दिया और स्वयं दीक्षा ले ली।
एक बार नमिराजाको बड़े जोरका बुखार आया। उसे शान्त करनेके लिये अनेक उपचार किये गये, किन्तु कोई लाभ न हुआ। ज्वरको शान्त करनेके लिये चन्दनके लेपकी आवश्यकता थी अतएव सभी रानियां चन्दन घिसने लगीं। रानियों के हाथमें अनेक कंकण थे। चन्दन घिसते समय उनसे जो रणकार होता