________________
३६८
* पार्श्वनाथ चरित्र *
था, वह राजाको बहुत हो अप्रिय मालूम होने लगा । इसलिये रानियोंने केवल एक एक कंकण हाथमें रखकर शेष सभी कंकण निकाल डाले । इससे आवाज आनी बन्द हो गयी। जब राजाको अवाज न सुनायी दी, तो उसने मन्त्रीसे पूछा, - " अब कंकणोंकी आवाज क्यों नहीं सुनायी देती । रानियोंने चन्दन घिसना क्या बन्द कर दिया है ?” यह सुन मन्त्रोने कहा - "नहीं, स्वामिन्! रानियां चन्दन घिस रही हैं किन्तु अब उनके हाथमें केवल एक एक कंकण रहनेके कारण आवाज नहीं आती ।"
मन्त्रीकी यह बात सुनकर राजाके हृदयमें ज्ञान उत्पन्न हुआ और वह अपने मनमें कहने लगा, – “ अहो ! बहुतों का संयोग होनाही दुःखदायक है । अनेक कंकणोंसे मुझे कष्ट हो रहा था । उनके कम हो जानेसे वह कष्ट दूर हो गया । अतः इस दृष्टान्तसे यह प्रतीत होता है, कि अकेले रहने में ही परम आनन्द है । अब यदि किसी प्रकार मेरा यह ज्वर शान्त हो जाय, तो मैं अपने राज्य परिवारको त्याग कर अकेला रहूंगा और चारित्र ग्रहण करूंगा ।
इसी तरह की बात सोचते-सोचते नमिराजाको निद्रा आ गयी । प्रातःकाल उसने स्वप्नमें अपनेको पर्वतके शिखर पर श्वेत हाथीपर बैठा हुआ देखा । जब सूर्योदय होनेपर शंख एवम् वाद्यध्वनिसे नमिराजाकी निद्रा भङ्ग हुई, तब उसने अपनेको सर्वथा स्वस्थ पाया। वह अपने मनमें कहने लगा, “ अहो ! आज मैंने कैला फले शुभ स्वप्न देखा ! गायपर, पर्वतके अग्रभागपर, प्रासादपर, हुए वृक्षपर और गजेन्द्रपर आरूढ़ होनेका स्वप्न दिखायी दे तो