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* पार्श्वनाथ चरित्र *
पुत्रदान देनेकी कृपा कीजिये । या तो उसे यहां ले आइये या मुझे ही वहां पहुँचा दीजिये ।”
मदनरेखाकी यह प्रार्थना सुनकर विद्याधरने कहा, हे भद्र े ! यदि तू मेरी पत्नी होना स्वीकार करे, तो मैं तेरी बात मान सकता हूं । देख, इस वैताढ्य पर्वतके रनावह नामक नगर में मणिचूड़ नामक एक राजा राज्य करते थे । उन्हींका मैं पुत्र हूँ । पिताने राजगद्दी पर मुझे बैठाकर चारणश्रमण मुनिके निकट दीक्षा ग्रहण कर ली है । कल वे नन्दीश्वर द्वीपके जिनेश्वरोंको वन्दना करने गये उस समय मैं भी उनके साथ वन्दना करनेके लिये गया था। वहांसे वापस आते समय मार्गमें मैंने तुझे देखा और तेरा रूप सौन्दर्य देखकर तुझपर मुग्ध हो गया, इसीलिये मैंने तुझे बचा लिया है । अब तू मेरी बात मान कर मेरी गृहिणी होना स्वीकार कर । इससे हम दोनों सुखी होंगे । पुत्रके सम्बन्ध में तो अब तुझे चिन्ता करने की आवश्यकता ही नहीं है । उसे मिथिलापति पद्मरथ राजा, जो अश्वक्रीड़ा करते हुए उधर से आ निकले थे, उठा ले गये हैं । और उसे अपनी रानी पुष्पमालाको सौंप दिया है । वह भी पुत्रकी भांति उसका लालन-पालन कर रही है । यह सब बातें मैं प्रज्ञप्तिविद्यासे जान सका हूं । अब तू उसकी चिन्ता छोड़ दे और सानन्द मेरे साथ ऐश्वर्य उपभोग कर ।
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विद्याधरकी यह बातें सुनकर मदनरेखा अपने मनमें कहने लगी, – “ अहो ! मेरा भाग्य कैसा विचित्र है, कि एक न एक आफत मेरे सिरपर मँडराया ही करती है । जिस आफत से