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* पार्श्वनाथ-चरित्र * मृत्युको प्राप्त कर वह पांचवें ब्रह्मदेवलोकमें देव हुआ और उसे दस सागरोपमकी आयु प्राप्त हुई।
पिताको मृत्यु देखकर चन्द्रयशा अत्यन्त कल्पान्त करने लगा। मदनरेखाको भी बहुत दुःख हुआ। यह अपने मनमें सोचने लगी,-"अहो! मेरे रूपको धिक्कार है। मैं कैसी अभागिनी हूं कि मेरा रूप ही मेरे पतिके विनाशका कारण हुआ। जिस दुरात्माने मेरे निमित्त अपने भाईकी हत्या की, वह अवश्य ही बलपूर्वक मुझे वश करने की चेष्टा करेगा। इसलिये अब यहाँ मेरा रहना ठीक नहीं। अब मुझे कहीं अन्यत्र जाकर जीविकाका कोई निर्दोष साधन खोज निकालना चाहिये। यहां रहनेसे सम्भव है कि यह पापी मेरे पुत्रको भी मार डाले।” यह सोच कर मदनरेखा मध्यरात्रिके सयय घरसे निकल पड़ी और पूर्व दिशाके एक जंगलमें जा पहुंची। रात्रि व्यतीत होनेपर दूसरे दिन मध्यान्हके समय एक सरोवर पर जा, उसने पल हार और जलपान द्वारा उदरपूर्ती की। थकावटके कारण उसका शरीर चूर चूर हो रहा था। *रोंमें अब एक कदम भी चलनेकी शक्ति न थी अतएव वह एक कदली-गृहमें जाकर सो रहो। इसी तरह वह दिन बीत गया। रात्रिके समय भी उस कदली-गृहको अन्यान्य स्थानोंसे अधिक सुरक्षित समझ कर वह हा सो रही । रात्रिमें व्याध, सिंह, चीते और शृगाल प्रभृति वन्य-पशुओंकी बोलियां सुनकर उसका कलेजा कांप उठता था। फिर भी, वह नमस्कार मंत्रका स्मरण करती हुई वहीं पड़ी रही। मध्यरात्रिके