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पार्श्वनाथ-चरित्र * करनेके लिये तैयार हूँ।" यह सुन मदनरेखाने कहा-“हे देव! ' जन्म, जरा, मृत्यु, रोग और शोकादिकसे वर्जित मोक्ष सुख प्राप्त
फरना यही एक मात्र मेरी आन्तरिक अभिलाषा है। यदि आप मेरा कुछ अभीष्ट करना ही चाहते हैं, तो मुझे शीघ्रही मिथिलापुरी ले चलिये। क्योंकि पहले मैं अपने पुत्रको एक बार जी भरकर देख लेना चाहती हूं। इसके बाद मैं धर्म कर्ममें विशेष रूपसे प्रवृत्त होनेकी चेष्टा करूंगी।" ___ मदनरेखाकी यह बात सुनकर देवने उसे उसी क्षण मिथिलापुरी पहुंचा दिया। इसो मिथिलापुरोमें श्रीमल्लिनाथ महाप्रभुके दीक्षा, जन्म और केवल ज्ञान-यह तोन कल्याणक हुए थे। इसीलिये मिथिलापुरी एक तीर्थस्थान मानी जाती है। मदनरेखा
और उस देवने यहां पहुंचकर जिनचैत्यों और उपाश्रय स्थित साध्विओंको सर्व प्रथम वन्दन किया। साध्विओंने उन्हें धर्मोंपदेश देते हुए कहा-"मनुष्य जन्म बड़ा ही दुर्लभ है, इसीके द्वारा धर्माधर्मका फल जाना जा सकता है अतएव मनुष्य जन्म प्राप्त होनेपर धर्मकार्यमें सदा तत्पर रहना चाहिये। साध्विओंका यह धर्मोपदेश सुननेके बाद उस देवताने मदनरेखासे कहा"हे सुन्दरी ! चलो, अब तुम्हें राज-मन्दिरमें ले चलूं और वहां तुम्हें तुम्हारा पुत्र दिखलाऊ।" यह सुन मदनरेखाने कहा-“हे देव ! भव मेरी मनोवृत्ति बदल गयी है। अब मैं पुत्र स्नेहको हृदयसे सदाके लिये दूर करना चाहती हूँ। पुत्रादि परिवार तो इस संसारमें भ्रमण करते हुए अनेक बार प्राप्त हो चुका है। अब मुझे उसकी