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षष्ठ सग
अपेक्षा नहीं है। अब तो मैं केवल दीक्षा लेना चाहती हूं और इसके लिये मैं इन्हों साध्विओंकी शरण ग्रहण करती हूं।” मदनरेखाकी यह बात सुनकर वह देव साध्विओं और मदनरेखाको नमस्कार कर स्वर्ग चला गया। अनन्तर मदनरेखाने साध्विओंके निकठ दीक्षा ग्रहण कर ली। साध्वियोंने उसका नाम बदलकर सुव्रता रखा। मदनरखा अब दुष्कर तप करने और निरतिवार पूर्वक चारित्रका पालन करनेमें अपना समय व्यतीत करने लगी।
उधर मदनरेखाके उस पुत्रके प्रभावसे पद्मरथ राजाका प्रभाव उत्तरोत्तर बढ़ने लगा। अनेक राजाओंने नम्रता पूर्वक उसकी सेवामें उपस्थित होकर उलकी अधीनता स्वीकार की। पद्मरथने इस प्रतापो बालकका नाम नमि रखा। एवं उसके लालन-पालन के लिये अनेक धात्रियोंको नियुक्त कर दिया । क्रमशः जब नमिने यौवनावस्थामें पदार्पण किया, तब पद्मरथने एक हजार और आठ कुलोन कन्याओंले उसका विवाह कर दिया । तदनन्तर कुछ दिनोंके बाद जब पद्मरबने देखा, कि नमिकुमार राज्यभार सम्हालने योग्य हो गया है, तब उसे राज गद्दोपर बैठा कर, उसने दीक्षा ले ली। इसके बाद पद्मरथ राजाने अपने कर्मोको क्षयकर मोक्षकी प्राप्ति को और नमिकुमारने अनेक राजाओंको अधीनकर अपनी और अपने राज्यका खूब उन्नति की।
इधर युगबाहुकी हत्या करनेके बाद मणिरथ राजा भी किसी प्रकार सुखी न हो सका। जिस रात्रिको उसने युगबाहुपर तल. वारसे वार किया था, उसी रात्रिको एक विषधर सर्पने उसे