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षष्ठ सर्ग*
समय उसे प्रसव वेदना आरम्भ हुई और कुछ ही देरके बाद उसने एक तेजस्वी पुत्रको जन्म दिया। इस समय उसके कष्टोंका कोई वारापार न था, परन्तु लाचार, सिरपर जो आ पड़ो थो, उसे सहन करनेके सिवा और कोई चारा न था।
सूर्योदय होनेपर उसने अपने पुत्रको उंगलीमें एक मुद्रिका पहना दी। जिसपर युगबाहुका नाम अङ्कित था। इसके बाद एक कम्बलपर उसे सुलाकर, वह अपने कपड़े तथा शरीर धोनेके लिये पासके सरोवर पर गयी। उस समय वहां जलमें एक हाथी क्रीड़ा कर रहा था। उसने मदनरेखाको ढूंढसे पकड़ कर आकाशकी ओर उछाल दिया। इसी समय एक युवक विद्याधर, जो नन्दीश्वर द्वीपसे आ रहा था, यहीं आ निकला। वह मदनरेखाको देखते ही उसपर मोहित हो गया। उसी समय उसने उसे आकाशमें गोंच लिया और वेताढ्य पर्वतपर उठा ले गया। वहां पहुंचनेपर मदनरेखाने धैर्य रखते हुए कहा--"हे महासत्व ! आजही रात्रिको मैंने जगलमें पुत्रको जन्म दिया है। उसे मैं कदली-गृहमें रख सरोवरपर गयी थी। वहांपर जलक्रीड़ा करते हुए हाथीने मुझे आकाशकी ओर उछाल दिया। किन्तु मेरे सौभाग्यसे उसी समय आप वहां आ पहुंचे और आपने मुझे उठा लिया। वर्ना नीचे आनेपर तो मेरे प्राण ही निकल जाते । अब मुझे अपने बच्चेकी फिक्र लगी है। यदि मैं इसी समय वहां न पहुँचुंगी, तो वन्य पशु उसे मार डालेंगे या निराहार अवस्थामें वह आप ही मर जायगा। इसलिये हे दयालु ! मुझे