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* षष्ठ सर्ग *
प्रसिद्ध नगर है। वहां एक समय मणिरथ नामक राजा राज्य करता था। वह बड़ा ही पापी और स्त्री-लम्पट था। उसके युगबाहु नामक एक भाई था जो युवराजके पदपर था। वह दयालु दानी, गुणवान और बहुत ही उत्तम प्रकृतिका पुरुष था। उसके मदनरेखा नामक एक सती साध्वी स्त्री थी। वह बड़ीही रूपवती और पतिव्रता थो। वह सदा पौषध और प्रतिक्रमणादिक किया करती थी। उसके चन्द्रयशा नामक एक पुत्र भी था। ___ एक बार परदेकी ओटसे मदनरेखाको गहने-कपड़ोंसे सजी हुई देखकर मणिरथ अपने मनमें कहने लगा--"अहो ! कैसी देवाङ्गनाके समान सुन्दरी है। मेरी स्त्री भी इतनी सुन्दर नहीं है। अतएव जिस तरह हो, इसे हाथमें करना चाहिये। यह सोचकर उसी दिनसे वह फल-फूल, वस्त्र और अलंकारादि चीजें उसके पास भेजने लगा। सरल हृदया मदनरेखा भो इन चीजोंको ज्येष्ठका प्रसाद समझकर रख लेने लगी। इसी तरह कुछ दिन बीत गये, तब एक दिन उसने अपनी दूतीको उसके पास भेजा। वह उसके पास आकर कहने लगो—“हे भद्रे ! राजा मणिरथ तेरे गुणोंपर तन-मनसे मुग्ध हो रहे हैं। वे तुझे अपनी अर्धाङ्गिनी बनाकर अपने राज्यको स्वामिनी बनाना चाहते हैं। यह तेरे लिये बड़े ही सौभाग्यको बात है, अतएव तुझे शीघ्रही स्वीकार कर लेना चाहिये।” दूतीकी यह बात सुनकर रानीने कहा-"उत्तम जनोंको ऐसा काम शोभा नहीं देता। शास्त्र में भी कहा है कि"हे गौतम! जब अनन्त पापराशिका उदय होता है तब स्त्रीत्व