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* पार्श्वनाथ चरित्र *
इधर राजा मणिरथ हमेशाँ युगबाहुके कामोंपर ध्यान रखता था। जब उसे उद्यान -क्रीड़ाका हाल मालूम हुआ, तब वह अपने मनमें कहने लगा- “आजसे बढ़कर अच्छा अवसर फिर शायदही मिलेगा । उद्यानमें भी आज उसके साथ बहुत ही कम मनुष्य हैं अतएव आज ही उसे तलवारके घाट उतार देना चाहिये ।” यह सोचकर वह हाथमें तलवार ले उद्यानमें पहुंचा। वहां उसने पहरेदारोंसे पूछा - "युगबाहु कहां है ? शीघ्रही बतलाओ । जंगलमें अपने भाईको अकेला जान कर मेरा चित्त विचलित हो उठा है। इसीलिये मैं अधीर होकर यहां दौड़ आया हूँ ।" राजा और पहरेदारोंकी यह बातचीत सुनकर युगबाहु जग पड़ा। वह तुरतही कदली गृहके बहार निकल आया और राजाको प्रणाम कर एक ओर खड़ा हो गया । यह देख राजाने कहा - " हे वत्स ! चलो, हमलोग नगर में चलें । हमलोगों के हजार दोस्त और हजार दुश्मन होते हैं अतएव इस तरह जंगलमें रहना ठीक नहीं ।" राजाकी यह बात सुनकर युगबाहुने उसी समय मदनरेखा तथा अन्यान्य मनुष्यों को साथ ले नगरकी ओर प्रस्थान किया । रास्ते में युगबाहुको साथ ले मणिरथ सब लोगोंसे कुछ आगे निकल गया। उसके मनमें तो आज पाप बसा हुआ था । अतएव पकान्त मिलते ही उसने युगबाहुकी गर्दनपर एक तलवार जमा दो । इससे तुरत ही युगबाहु मूर्च्छित होकर जमीनपर गिर पड़ा। इधर मदनरेखा इन लोगोंसे थोड़ी ही दूरापर थी । इसलिये वह इस घटनाको देखते ही बड़े जोरसे चिल्ला उठी । उसकी यह चिल्लाहट