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* पाश्वमाथ-चरित्र - (५) कुड्यन्तर-अर्थात् दीवारके अन्तरका भी त्याग करना चाहिये। जिस घरमें स्त्री-पुरुष सोते हों और जहांसे कङ्कण आदिकी या हाव भाव, विलास और हास्यादिको अवाज सुनायी देती हो, वहां दीवारका अन्तर होनेपर भी ब्रह्मचारीको न रहना चाहिये।
(६) पुव्वकीलीय-पूर्व कीड़ित अर्थात् पूर्वकालमें स्त्रोके साथ जो क्रीड़ा आदि को हो उसका भी स्मरण न करना चाहिये।
(७)पणीय-अत्यन्त स्निग्ध आहार यानि जिस पदार्थके सेवनसे कामोद्दीपन होनेकी संभावना हो, ऐसे पदार्थका त्याग करना चाहिये।
(८) अइमायाहार-ज़ियादा आहार न करना चाहिये।
(६) विभूसणाई-आभूषण, स्वच्छ वस्त्र, स्नान, मजन और अंगशोभा आदिका भी ब्रह्मवारीको त्याग करना चाहिये। ___इन नव मर्यादाओंकी यत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिये और निरतिचार पूर्वक ब्रह्मचर्यका पालन करना चाहिये । इसमें पुरुषको स्वदारासन्तोष व्रत और स्त्रोको स्वपुरुष सन्तोष व्रत धारण करना चाहिये। जो लोग विषयाकुल हो मनसे भी शीलका खण्डन करते हैं, वे मणिरथ राजाकी तरह घोर नरकके अधिकारी होते हैं। और जो सतो मदनरेखाकी भांति निर्मल शीलका पालन करते हैं, वह भाग्यवान जीवोंमें सम्मानित होकर सुगतिको उपार्जन करते हैं। मणिरथ और मदनरेखाका दृष्टान्त इस प्रकार है :--
इस भरत क्षेत्रके अवन्ती नामक देशमें सुदर्शन नामक एक