________________
* षष्ठ सर्ग
"हे साविक! आत्म-हत्याका पातक करना ठीक नहीं । शास्त्रमें भी इसकी बहुत हो निन्दा की गयी है।" यह कहकर वह ब्राह्मण चन्द्रको वहीं छोड़कर चला गया। इसके बाद चन्द्र वहांसे चलकर एक पहाड़पर पहुँचा। अभी उसके विचारोंमें परिवर्तन न हुआ था। अब भी उसके सिरपर आत्म-हत्या करनेका भूत सवार था, अतएव उसने फिर फांसी लगानेकी तैयारी की। इसी जगह एक मुनि कायोत्सर्ग कर रहे थे। उन्होंने उसका यह कार्य देखकर कहा-“हे भाई! यह पाप-कर्म न कर !” यह सुनकर उसे बड़ाही आश्चर्य हुआ, क्योंकि वह उस स्थानको सर्वथा एकान्त समझता था। चारों ओर निगाह करनेपर वृक्षोंकी घटामें उसे एक मुनि दिखायी दिये। उसी समय वह उनके पास पहुँचा
और नमस्कार कर कहने लगा-“हे नाथ ! मैं बड़ा ही दुर्भागो हूँ। मुझे अपना यह जीवन भाररूप मालूम हो रहा है। अब मैं क्या करूँ, यही समझ नहीं पड़ता। यह सुन मुनिने कहा"हे भद्र ! आत्म-हत्याके पातकसे प्राणीकी दुर्गति होती है और जीवित रहनेसे तो किसी न किसी दिन अवश्य ही कल्याण होता है, इसलिये आत्म-हत्या करनेका विचार छोड़ दे। इस सम्बन्धमें तुझे अपना ही उदाहरण देता हूँ। ध्यानसे सुन! __मंगलपुरमें चन्द्रसेन नामक एक राजा राज्य करता था। उसके भानु नामक एक प्रधानमन्त्री था। उसकी पत्नीका नाम सरस्वती था। उन दोनोंमें बड़ा ही प्रेम था, एक दूसरेको प्राणसे भी अधिक चाहते थे। एक दिन घर आनेपर भानुने देखा कि सर
२४