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*षष्ठ सगं *
जब चिताभस्म और अस्थिशेष गंगामें डालने लगा तब उसे सरस्वतीका स्मरण हो आगा। वह उसका नाम लेकर रोने लगा। संयोगवश उसका यह विलाप काशीराजको सरस्वती नामक पुत्रीके कानोंमें जा पड़ा, वह सुनते ही मूर्छित होकर जमीनपर गिर पड़ी। उसकी यह अवस्था देखकर सखियां राजाके पास दौड़ आयीं और उसे सारा हाल कह सुनाया। सुनते ही राजाने जाकर देखा तो वास्तवमें राजकुमारीकी दशा बड़ी शोचनीय हो रही है। इससे वह चिन्तित होने लगा। शोतल वायु और विविध उपचारोंसे राजकुमारीको जब होश हुआ तब राजाने उससे इस अस्वस्थाका कारण पूछा। सुनकर राजकुमारीने कहा-"पिताजी! गंगा-तटपर जो पुरुष रो रहा है वह मेरा पूर्व जन्मका पति है। अतः इस जन्ममें भी उसोको मैं अपना पति बनाऊंगी। अब उसके सिवा संसारमें सभी पुरुष मेरे लिये भाई और पिताके समान हैं।"
पुत्रीकी यह बात सुनकर राजाने भानुको उसी समय बुलाया और उससे सारा हाल कहते हुए सरस्वतीके साथ शादी करनेकी प्रार्थना को। यह सुन भानुने कहा-"राजन् । मैंने नियम कर लिया है, कि अब दूसरी स्त्रीसे व्याह न करूंगा, किन्तु आपकी बातोंसे मुझे विश्वास हो आया है कि आपको पुत्री शायद मेरी वहो पहली स्त्री है, इसी लिये मैं आपको बात मंजूर करता हूँ।" उसकी यह बात सुनकर राजाने बड़े समारोहके साथ दोनोंका पाणि-ग्रहण करा दिया। इसके बाद भानु वहीं रहने और