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* षष्ठ सग
हुमा पुष्पपुर पहुँचा। वहां वह बड़ाही महर्द्धिक हुआ, फिर भी उसने नमस्कार महामन्त्रका स्मरण करना किसी भी अवस्था में नहीं छोड़ा।
दैवयोगसे कुछ दिनोंके बाद अन्यान्य मित्र भी आ पहुँचे। एक दिन सबके इकट्ठा होनेपर चारोंने क्रमशः अपना वृत्तान्त कह सुनाया। उस समय चन्द्रके मुखसे नमस्कारका महात्म्य सुनकर अन्य तोन मित्रोंने भी उससे नमस्कार मन्त्र सीख लिया
और इससे वे तीनों ही व्यापार कर बड़े ही महर्द्धिक हुए। ____ एक बार उन चारों मित्रोंने विचार किया कि हम लोगोंने काफी धन कमा लिया है, अतएव अब अपने नगर चलना चाहिये। यह सोचकर उन लोगोंने नौका द्वारा समुद्र पारकर अपने नगरकी राह ली। मार्गमें एक सरोवरके पास जा, वहां वे खाने-पीनेकी तैयारी करने लगे। भोजन तैयार होनेपर ज्योंही वे खाने चले, त्योंही उनकी दृष्टि एक मुनिपर जा पड़ी। वह मुनि छः महोनेके उपवासी थे और नगर में गोचरी करनेके लिये जा रहे थे। उन्हें देखकर उन चारोंने उसो समय बुलाया और भावपूर्वक अहार देकर भोग-कर्म फल उपार्जन किया। इसके बाद वे चारोजन सकुशल अपने नगर आ गये। यहां सब स्वजनोंसे भेंट होनेपर उन्होंने अनेक तरहके उत्सव मनाये। इसके बाद दीर्घकालतक ऋद्धि सुख भोगकर वे चारों दानके प्रभावसे बारहवें देवलोकमें देव हुए। देव आयु पूर्ण होनेपर वहांसे च्युत होकर वे चारोंजन भिन्न-भिन्न देशोंके राजा हुए। पूर्व जन्मके संस्कारसे इन चारोंमें