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* षष्ठ सर्ग *
३०१ उसके द्वारा सरस्वतीको कहलाया कि मन्त्रीकी मृत्यु हो गयी है । जब यह समाचार सरस्वतीने सुना तो वह कटे हुए कदलीवृक्षकी तरह जमीनपर गिर पड़ी और उसी समय उसकी मृत्यु हो गयी । यह देखकर राजाके दूतको बड़ा ही दुःख हुआ । वह उलटे पैरों राजाके पास पहुंचा और उसे यह हाल कह सुनाया । सुनकर राजाको भो अत्यन्त दुःख हुआ । वह अपने मनमें कहने लगा - " अहो ! मैंने व्यर्थही स्त्री हत्याका पाप अपने सिर बटोर लिया । अब यदि यह समाचार मन्त्री सुन लेगा, तो वह भी शायद प्राण छोड़ देगा, इसलिये उसे बचानेकी चेष्टा करनी चाहिये । यह सोचकर राजा मन्त्रीके डेरेपर पहुंचा । राजाको आते देखकर मन्त्रीको बड़ा आश्चर्य हुआ । वह चकित होकर कहने लगा“स्वामिन्! आज आपने सेवकके यहां आनेकी कृपा की है, इसलिये कोई विशेष कारण होना चाहिये । बतलाइये सेवकको क्या आज्ञा हैं ?" यह सुन राजाने कहा- “ मन्त्री ! आज मैं तुम्हारे पास कुछ मांगने आया हूं । यदि बचन दो तो कहूं ।” मन्त्रीने कहा - "स्वामिन्! शीघ्र कहिये | मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हूँ ?” यह सुन राजाने कहा - "मन्त्री ! तुम्हें खयाल होगा कि एक दिन तुमने अपने दाम्पत्य- प्रेमकी सराहना कर अपनेको बड़ाही भाग्यबान बताया था। उस समय मुझे तुम्हारी बातपर विश्वास नहीं हुआ अतएव मैंने परीक्षा लेनेके लिये सरस्वतीको तुम्हारा मृत्यु समाचार कहला भेजा; पर मुझे कहतेही दुःख होता है कि इसका परिणाम अत्यन्त बुरा हुआ । तुम्हारी मृत्युके समाचार सुनतेही