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* पार्श्वनाथ-चरित्र * उन्होंने उसी समय वहां उपस्थित हो अपने समस्त कार्य इस प्रकार सम्पन्न किये :.. सर्व प्रथम वायुकुमार देवताओंने एक योजन भूमि साफ को और मेघकुमार देवताओंने वहां सुगन्धित जलकी वृष्टि कर भूमि को सिंचन किया। इसके बाद व्यंतर देवताओंने वहां स्वर्ण और रत्न द्वारा भूमिपीठकी रचना कर, नाना प्रकारके पुष्प बिछा दिये। उस स्थानको शोभा बढ़ानेके लिये उन्होंने चारों ओर रत्न, माणिक्य और कंचनके तोरण बाधे। इसके बाद वैमानिक, ज्योतिष्क और भवनपति देवताओंने मणि, रत्न और स्वर्णके कंगूरोंसे सुशो भित रत्न, स्वर्ण और रजतमय तीन गढ़ बनाये। अनन्तर व्यन्तरोने गढ़के चारों द्वारपर स्वर्ण कमलोंसे अलंकृत चार बावलियां बनायीं। दूसरे किलेके अन्दर ईशानकोणमें भगवान के विश्रामके लिये देवच्छन्द तैयार किया और समवसरणके बीचमें उन्होंने सत्ताईस धनुष ऊंचा एक अशोक वृक्ष उत्पन्न किया। उसके नीचे विविध रत्नमय चार पादपीठ बनाये। उनके बीचमें मणिमय प्रतिच्छन्द बनाया। उसके ऊपर पूर्व ओर तथा अन्यान्य दिशाओंमें रत्नमय सिंहासनोंकी स्थापना की। इन सिंहासनोंपर तीन छत्र धारण किये गये। दो-दो यक्षोंने चारों ओर दो दो चामर धारण किये। चारों द्वारके स्वर्णकमलपर चार धर्मचक्र तैयार किये गये। इनके अतिरिक्त और भी जो काम थे, वे सभी उन्होंने पूर्ण किये।
इसके बाद सुर संचारित स्वर्ण कमलोंपर चरण रखते हुए