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वसंतककी कथा।
वसंतपुर नामक एक नगरमें महाबलवान, तेजस्वी और परम प्रतापी मेघवाहन नामक एक राजा राज्य करता था। उसे प्रियंकरा नामक एक पटरानी थी। इसके अतिरिक्त उसे पांचसो
और भी रानियां थीं। इन रानियोंके साथ वह आनन्दपूर्वक जीवन बिताता था और प्रजा भी उसके राज्यमें सब तरहसे सुखी थी।
एक दिन रात्रिके समय सिपाहियोंने चोरीके मालके साथ किसी चोरको देखा और उसे गिरफ्तार कर लिया। दूसरे दिन उन्होंने उसे राजाके सम्मुख उपस्थित किया । उसे देखकर राजाने प्रसन्नता पूर्वक उसके बन्धन ढीले करा दिये और उससे पूछा"हे युवक ! तेरा कौन देश और कौन जाति है ? इस अवस्थामें तूने यह पापकार्य क्यों आरम्भ किया है ?” राजाकी यह बात सुन चोरने लजित होते हुए कहा--"हे राजन् ! वंध्यपुर नगरमें वसुदत्त नामक एक वणिक रहता है, उसीका मैं पुत्र हूं। मेरा नाम वसन्तक है। पिताने भलीभांति मेरा लालन-पालन किया, मुझे पढ़ाया लिखाया और मेरा व्याह भी किया; किन्तु दुष्कर्म योगसे मैं जुआरो बन गया। माता-पिता और स्वजनोंने मुझे बहुत