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* षष्ठ सगे
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सौंपा। इससे उज्झिताको बहुत ही दुःख हुआ, किन्तु इसे खीकार करनेके सिवा दूसरा कोई चारा ही न था। ___ इसके बाद दत्तने भक्षिता नामक दूसरी बहूको बुलाकर पूछा,-"वत्से ! मुझे वही पांच दाने ला दो। यह सुन कर भक्षिताने भी घरसे दूसरे दाने लाकर दत्तके हाथमें रखें। दत्तने पूछा- "हे वत्से! यह वही दाने हैं या दूसरे ? जो बात हो वह सच्ची ही कहना ; क्योंकि असत्यका पाप सभी पापोंसे बढकर होता है।” श्वसुरकी यह बात सुन कर उसने कहा,"हे पिताजी ! यह तो दूसरे दाने हैं। आपने जिस समय मुझे दाने दिये, उस समय मैंने सोचा, कि इन्हें कहां कखू ? कहीं ऐसा न हो, कि यह खो जायें? यह सोचकर उसी समय मैं उन्हें खा गयी थी।" भक्षिताकी यह बात सुनकर दत्तने अपने समस्त खजनोंके समक्ष उसे कूटने, पीसने और भोजनादिके तैयार करनेका काम सौंपा। भक्षिताको भी यह काम पाकर किसी प्रकारका सुख या सन्तोष न हुआ। ___ इसके बाद दत्तने तोसरी बहू रक्षिताको बुला कर कहा,“हे वत्से । मुझे वही पांच दाने ला दो। यह सुन रक्षिताने उन्हें अपने गहनोंकी सन्दूकमें सुरक्षित रख छोड़े थे, अतएव वह उसी समय उन्हें ले आयी। दत्तने पूछा, हे वत्से! यह वही दाने हैं या और हैं ? यह सुन रक्षिताने कहा, "पिताजी ! यह वही दाने हैं ; क्योंकि मैंने इन्हें अच्छी तरह अपने गहनोंकी सन्दूकमें रख छोड़े थे।” रक्षिताकी यह बात सुनकर दत्तने