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* पाश्वनाथ-चरित्र * और उससे कहने लगा-"हेराजन् ! मैंने आपके पुत्रका वध किया है, इस लिये आप मेरा सर्वस्व हरण कर मुझे शीघ्र ही प्राणदण्ड दीजिये।" वसन्तको यह बात सुन राजा चिन्तामें पड़ गया और सोचने लगा, कि इसने राजकुमारको किस लिये मारा और अब यह क्यों इस प्रकार दण्डित होने आया है ? किन्तु वसन्तसे इस सम्बन्धमें कुछ प्रश्नोत्तर होनेके पूर्वही वहां सुप्रभा आ पहुंची और राजासे कहने लगी-“हे राजन् ! मैंने अपना दोहद पूर्ण करनेके लिये राजकुमारको मरवाया है। अतः इसके लिये जो दण्ड देना हो, वह आप मुझे दोजिये।” इस तरह दोनों अपने अपनेको हत्या का अपराधो बतलाते थे। यह देख राजा किंकर्तव्य विमूढ़ हो गया। अब यह किसे सच्चा अपराधो समझे और किसे दण्ड दे ?
इसी समय प्रभाकर भी राजाके पास आ पहुंचा। उसने कृत्रिम स्वरसे कांपते हुए कहा-“राजन् ! पाप-बुद्धिके कारण राजकुमारका वध तो मैंने किया है । आप जानतेही है कि यह मेरो स्त्री और यह मेरा मित्र है। इसी लिये यह दोनों मुझे बचानेके लिये अपनेको अपराधी बतला रहे हैं। राजकुमारकी हत्याके कारण आप मुझो जो चाहें वह दण्ड दे सकते हैं। मैं अपने कियेका फल भोगनेको तैयार हूं।
मन्त्रीकी यह बातें सुन राजा और भो आश्चर्यमें पड़ गया। वह बड़ी देरतक सोचनेके बाद कहने लगा-"मन्त्री ! मैं थोड़ी देरके लिये मान लेता हूँ कि आपहीने राजकुमारकी हत्या को है, किन्तु इस अपकारके कारण यदि मैं आपके उन उपकारोंको भी भुला