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* षष्ठ सर्ग*
३३१ यह विचार करते-करते उसे मूर्छा आ गया और तुरत ही उसे जातिस्मरण ज्ञान हो आया। वह सावधान हो कहने लगा-"अहो ! आश्चर्यको बात है, कि मुझे अपने पूर्व जन्मकी सभी बातें याद आ रही हैं।" यह सुन उसके मन्त्रीने पूछा-“राजन् ! यदि आपको कोई आपत्ति न हो तो वह बातें हमें भी कह सुनायें।" राजाने कहा-"सुनाता हूं। ध्यानसे सुनो।
पूर्व कालमें वसन्तपुर नामक नगरमें दत्त नामक एक ब्राह्मण रहता था। उसने लग्न और निमित्त-ज्ञानके कथनसे संसारमें प्रसिद्धि प्राप्त की थी। एक बार उस ब्राह्मणको कर्मवशात् कुष्ठ रोग हो गया। नाना प्रकारके उपचार करने पर भी उसका वह रोग शान्त न हुआ। कुछ दिनोंके बाद घृणाके कारण उसके परिवारवालोंने उसका त्याग कर दिया । अतएव उसे बहुत ही दुःख हुआ। इस दुःखसे मुक्ति लाभ करनेके लिये वह गंगाके तटपर पहुँचा और पानीमें कूद पड़नेका विचार किया। इतनेमें आकाश-मार्गसे जाते हुए एक मुनिने उसे देखा। उन्होंने उससे पूछा-“हे महाभाग ! तू गंगामें क्यों कूदना चाहता है ?” दत्तने कहा-“हे साधो ! रोगके कारण मैं बहुत ही दुःखी हो रहा हूँ। इसीलिये प्राण देकर सदाके लिये मैं छुटकारा प्राप्त करना चाहता हूँ। यह सुन मुनिने कहा-“हे महाभाग ! तू सर्व रोग नाशक जिन धर्म रूपी महा रसायनका सेवन कर और उसीको निरन्तर सेवा कर तथा विषवृक्ष (संसार ) के मूलभूत दुष्कर्मका छेदन कर।" मुनिकी यह बात सुन कर दत्तने पूछा-"भगवन् ! आप धर्मको