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* पार्श्वनाथ-चरित्ररसायन क्यों कहते हैं ?” मुनिने कहा-“हे महाभाग ! कर्म जन्म रोगोंको नष्ट करनेके लिये धर्म रसायन रूप ही है।" मुनिकी यह बात सुन दत्तने शुद्ध भावसे सम्यक्त्व सहित पंचअणुव्रत रूपी ग्रहस्थ धर्म स्वीकार किया। उस समयसे वह अचित आहार, प्रासुक जलपान और पंचपरमेष्टी नमस्कार ध्यान करने लगा। साथही अपने हृदयमें सदा शुभ भावनाओंको ही स्थान देने लगा।
किसी समय दत्त एक चैत्यमें गया और वहां जिनेश्वर तथा मुनिको वन्दन कर वहीं बैठ गया । उसी जगह पुष्कलिक नामक एक श्रावक पहलेसे ही मुनिके पास बैठा हुआ था। उसने दत्तको देखकर मुनिसे पूछा- "हे भगवन ! इस प्रकारके विविध व्याधिसे युक्त मनुष्योंको जिन-मन्दिरमें आना और जिन-वन्दन करना उचित है ?” मुनिने कहा-“हे महाभाग ! अवग्रहका पालन और आशातनाका निवारण कर देव-वन्दन करनेमें क्या दोष है ? साधुओंका शरीर भी पसोनेके कारण मलीन हो जाता है, किन्तु वे भी उसी रूपसे चैत्यमें देव-वन्दन करते हैं।” यह सुन पुष्कलिकने पुनः पूछा-“हे भगवन् ! यह मनुष्य किस गतिको प्राप्त होगा ?” मुनिने ज्ञानके प्रभावसे सोच कर कहा-"पूर्व कालमें आयुका बन्धन होनेसे यह मृत्यु होनेपर राजपुरमें तिर्यंच गतिमें मुर्गेके रूपमें उत्पन्न होगा।" अपना यह भविष्य सुनकर दत्तको बड़ा ही दुःख हुआ और वह वहीं बैठ कर रोने-कलपने लगा। उसकी यह अवस्था देखकर मुनिने उसे उपदेश देते हुए कहा-“हे सुज्ञ ! खेद मत कर । जिस तरह प्रचण्ड वायुके कारण