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* पार्श्वनाथ चरित्र #
मन्त्रीके यह वचन सुन कलिंगराजने कहा- “ मन्त्री ! मैं यह
नहीं जानता था कि पार्श्वकुमार इस तरह बलवान हैं । इसी भुलावेमें मैंने यह अपराध कर डाला । खैर, अब तुम जो कहो, वह मैं करने को तैयार हूँ ।” मन्त्रीने कहा- “ इसी समय चलकर उनसे क्षमा प्रार्थना कीजिये। यह सुन उसी समय कलिंगराज कंठपर कुठार रखे, समस्त सामन्त और मण्डलेश्वरोंके साथ पार्श्वकुमारसे क्षमा प्रार्थना करने चला । मार्गमें उनकी समुद्रसी सेना देख मृतककी भांति वह भयभीत होता हुआ कांपने लगा और किसी तरह उनके निवास-स - स्थानतक पहुँचा । द्वारपालने पार्श्वकुमारकी आज्ञा प्राप्त कर उसे सभा में उपस्थित किया । उसे देखतेही पार्श्वकुमारने कुठार रख देने को कहा। अब कलिंगराजने कुठार रखकर पार्श्वकुमारको प्रणाम करते हुए कहा - " हे स्वामिन्! मैं आपका सेवक हूँ। मेरा अपराध क्षमा कीजिये। मैं आपकी शरण में आया हूँ । मुझे शरण दीजिये।” यह सुन पर्श्वकुमारने उसकी क्षमा-प्रार्थना स्वीकार करते हुए कहा- "हे भद्र ! तेरा कल्याण हो । मैं तुझे क्षमा करता हूँ | तू सानन्द राज्य कर । अब कभी ऐसा आचरण न करना ।” कलिंगराजने सिर नवाँ कर पार्श्वकुमारकी यह बात मान ली । अतएव उन्होंने उसका यथोचित सम्मान कर उसे बिदा किया। इसके बाद कलिंगराजने अपना सैन्य समेट लिया और शीघ्र ही कुशस्थलका त्यागकर अपने देशके लिये प्रयाण किया ।
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प्रसेनजीतको यह समाचार सुनकर बड़ाही आनन्द हुआ । अतएव वह उसी समय प्रभावतीके साथ पार्श्वकुमारकी सेवामें उपस्थित हो