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* पार्श्वनाथ-चरित्र - ___ अब पार्श्वप्रभुने दीक्षा लेनेके लिये वार्षिक दान देना आरम्भ किया। उस समय प्रभुके आदेशसे इन्द्रने सर्वत्र घोषणा कर दी कि पार्श्वप्रभु खूब दान दे रहे हैं। जिसकी इच्छा हो, वह खुशीसे दान ग्रहण कर सकता है।” इसके बाद शक्रेन्द्रके आदेशसे कुबेर भगवानके धन-भण्डारमें मेघकी भांति धनकी वृष्टि करने लगे। इधर प्रभु भी प्रति दिन एक करोड़ आठ लाख स्वर्ण मुद्राय दान देने लगे। इससे समस्त संसारका दारिद्र रूपी दावानल शान्त हो गया और चारों ओर आनन्द-ही-आनन्द दिखायी देने लगा। इस अवसरपर भगवानने सब मिला कर तीन अरब, अट्ठासी करोड़ और अस्सी लाख (३८८८००००००) स्वर्ण मुद्रायें दान की।
इसके बाद दीक्षाका अवसर जानकर चौंसठ इन्द्र वहां उपस्थित हुए और उन्होंने दीक्षाका महोत्सव मनाना आरम्भ किया। इस समय सर्व प्रथम तीर्थजलसे भरे हुए सोने, चान्दो और रत्नों के कुम्भ द्वारा भगवानको स्नान कराया। इसके बाद चन्दन कर्पूरादि सुगन्धित द्रव्यसे प्रभुको विलेपन करा, उन्हें दिव्य वस्त्र पहनाये गये। उस समय पारिजात पुष्पोंके रमणीय हार प्रभृति धारण करनेके कारण भगवान बहुत हो सुन्दर दिखलायी देने लगे। इसके बाद इन्द्रोंने उन्हें सुन्दर हार, कुण्डल, मुकुट, कंकण
और बाजूबन्द प्रभृति आभूषण पहनाये। तदनन्तर शक्रेन्द्रकी बनायी हुई पालखीपर आरूढ हो प्रभुने उद्यान की ओर प्रस्थान किया । उस समय भगवानके ऊपर छत्र और दोनों ओर दो चामर