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३१६ . * पार्श्वनाथ-चरित्र * राजाको अश्वसेन राजाने एक महलमें ठहराया और उनका आदर सत्कार किया। इस समय इन्द्रने भी उपस्थित हो वन्दनादिक कर आठ दिन पर्यन्त महोत्सव मनाया। इन सब कामोंसे निवृत्त होनेपर अश्वसेनने प्रसेनजितके पास जाकर उनका कुशल समाचार पूछा । इधर उधरकी बातें होनेके बाद अवसर देखकर प्रसेनजित्ने कहा-“राजन् ! मेरी यह पुत्री पार्श्वकुमारपर किस तरह अनुरक्त हो रही है, यह तो आपने मन्त्री-पुत्रसे सुना ही होगा। आपने मुझपर बड़ी दया की है और यह उसीका फल है कि कलिंगराज हम लोगोंका कुछ भी न बिगाड़ सका और हम लोग आज कुशलपूर्वक बैठे हैं। अन्यथा न जाने हम लोगोंकी क्या दुर्गति होती। जहां आपने इतनी कृपा की है, तहां अब इतनी दया और कीजिये, कि इन दोनोंका पाणिग्रहण भी हो जाय। इससे मैं आपका आजन्म ऋणी रहूंगा।" यह सुन अश्वसेन राजाने कहा -- "आप ठीक कहते हैं। और हम भी यही चाहते हैं कि पार्श्वकुमारका व्याह हो, किन्तु वह तो संसारसे विरक्त सा मालूम होता है। वह क्या करेगा यह तो समझ ही नहीं पड़ता। फिर भी मैं आपके अनुरोधके कारण उसको अनिच्छा होनेपर भी आपकी कन्याका उससे अवश्य ही पारिग्रहण कराऊंगा। आप किसी प्रकारको चिन्ता न करें।” यह कह राजा अश्वसेन प्रसेनजित्को अपने साथ ले पार्श्वकुमारके पास गये और उनसे कहा-“हे वत्स! प्रसेनजित राजा अपनी कन्याका तेरे साथ ब्याह करना चाहते हैं। अतएव यह तुझे स्वीकार कर