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* पञ्चम सर्ग उन्हें नमस्कार कर कहने लगा-“हे नाथ! आपके दर्शनसे मेरा जीवन आज सफल हो गया । और यह यवन भी आपके प्रतापसे सजन हो गया। आप सूर्यकी तरह संसारमें प्रकाश फैलानेवाले हैं। कृपया अब इस कन्याका पाणिग्रहण कर मुझे कृतकृत्य कीजिये।" प्रसेनजितको यह प्रार्थना सुन पार्श्वकुमारने कहा“राजन् ! मैं पिताके आदेशानुसार कलिंगराजको दण्ड देने ही आया था। बिना उनकी आज्ञाके मैं कुछ भी नहीं कर सकता। अतएव मैं आपको कन्याका पाणिग्रहण करनेके लिये असमर्थ हूँ। कृपया इस सम्बन्धमें व्यर्थ ही आग्रह न करें।” पार्श्वकुमारकी यह बात सुन प्रभावती अपने भाग्यको कोसने लगी। वह कहने लगी-“मालूम होता है कि मेरा भाग्य ही बुरा है। अन्यथा पार्श्वकुमार पिताकी यह प्रार्थना ही क्यों अस्वीकार करते ?" इधर प्रसेनजितने अपने मनमें सोचा कि पार्श्वकुमार तो सर्वथा निःस्नेह मालूम होते हैं, इसलिये अब इनसे कुछ कहना सुनना व्यर्थ है। अब तो अश्वसेन राजाको समझानेसे ही काम निकल सकता है। ___ इस प्रकार सोचते हुए प्रसेनजित्ने प्रभावतीको धैर्य दिया
और उसे साथ ले पार्श्वकुमारके साथ वाराणसोके लिये प्रस्थान किया। इधर अश्वसेन राजाको पार्श्वकुमारका विजय समाचार पहलेही मिल चुका था। अतएव पार्श्वकुमारके पहुँचनेपर उन्होंने बड़ा हो महोत्सव किया और बड़े समारोहके साथ पार्श्वकुमारको नगरमें प्रवेश कराया। इसके बाद प्रभावती और प्रसेनजित्