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* पार्श्वनाथ-चरित्र * कर पार्श्वकुमारसे निवेदन किया-“हे नाथ! मैं इन्द्रका सारथि हूं। वे आपको अतुल बलवान समझते हैं। इसलिये उन्होंने श्रद्धापूर्वक आपके लिये यह रथ लेकर मुझे भेजा है।" मातलिक का यह निवेदन सुन पार्श्वकुमारने इन्द्र के रथपर बैठना स्वीकार कर लिया। इस प्रकार यह सैन्य बड़ो शानसे आगे बढ़ता हुआ शीघ्रहो कुशस्थल आ पहुँचा। नगरके बाहरहा सेनाके लिये शिविर की स्थापना की गयी। पार्श्वकुमारके लिये देवताओंने पहलेसे ही यहाँपर एक उद्यानमें सात खंडका अत्यन्त रमणीय महल बना रखा था उसीमें उन्होंने आकर निवास किया।
शिविरकी स्थापना करनेके बाद पार्श्वकुमारने एक चतुर दूतको भलीभांति सब बातें सिखा कर उसे कलिंगराजके पास भेजा। उसने जाकर राजासे कहा कि-“पार्श्वकुमारने आपको आदेश दिया है कि आप अब किसी प्रकारका उपद्रव न कर चुपचाप अपने नगरको लौट जाइये। यदि आप उनके आदेशका पालन न करेंगे तो आपका कल्याण न होगा।” दूतको यह बात सुन कलिंग राजाने क्रुद्ध होकर कहा-“हे दूत! तू मुझे पहचानता नहीं है, इसीलिये ऐसी बातें कह रहा है। मैं अश्वसेन या पार्श्वकुमार किसोसे भी नहीं डरता। उनमें वह शक्ति हो कहां, कि मुझसे युद्ध करनेका साहस करें। दूत होनेके कारण मैं तेरे धृष्ट वचनोंके लिये तुझे क्षमा करता हूँ, अन्यथा तुझे भो इसके लिये कड़ा दण्ड देता।” कलिंगराजको यह बात सुन दूतने क्रुद्ध होकर कहा-“हे मूढ़ ! तू वृथा ही इतना अभिमान कर