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* पार्श्वनाथ-चरित्र
इस बालकका नाम मैं पार्श्व रखता हूँ। यह कहते हुए अश्वसेन राजाने सबके समक्ष राजकुमारका नाम पार्श्व रखा। अनन्तर धात्रियों द्वारा बड़े यत्नसे राजकुमारका लालन-पालन होने लगा। जब इन्हें क्षुधा लगती, तब वे अंगूठेमें रखे हुए अमृतका पान करते थे। इन्द्रको नियुक्त की हुई देवाङ्गनायें भी इनको खेलाती थीं। इस प्रकार वमृषभनाराच संघयण,समचतु रस्र संस्थान और बिम्ब फलके समान ओष्टको धारण करनेवाले, कृष्ण शरीरवाले, नीलकान्तिवाले, दिव्यनेत्रवाले, पद्मके समान श्वासवाले और बतीस लक्षणोंवाले पार्श्वकुमारने बाल्यावस्था अतिक्रमण कर युवावस्था में प्रवेश किया। बतीस सुलक्षण यह माने गये हैं। ___ नाभि, सत्त्व और स्वरमें गंभीरता हो, स्कन्ध, पाद और मस्तकमें ऊँचाई हो, केश नख और दांतोंमें सूक्ष्मता हो, चरण भुजा और अंगुलियोंमें सरलता हो, भ्रकुटो, मुख और छातीमें विशालता हो, आंखकी पुतली, वृत और केशमें श्यामता हो, कमर, पीठ और पुरुष-चिन्हमें लघुता हो, दाँत और नेत्रोंमें सुफेदो हो, हाथ, पैर, गुदा, तालु, जीभ, दोनों ओष्ट, नख और मांस इनमें लालिमा हो । इतनी बातें जिसमें पायी जाती हों, वह पुरुष बत्तीस लक्षणोंसे युक्त माना जाता है। .. भगवान न केवल यह बत्तीस हो लक्षण थे, बल्कि और भी १००८ सुलक्षण थे। उनका शरीर नव हाथ ऊंचा, अद्भुत रूप और देह गन्धयुक्त थी। उनके आहार और नीहार अदृश्य थे।