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* पञ्चम सर्ग *
३०६ उनका शरीर रोग, मल और पसिनेसे रहित था । युवावस्था प्राप्त होनेपर मानो सोनेमें सुगन्ध आ गयी । उनका रूप-सौन्दर्य उनकी कान्ति और उनके गुण अधिकाधिक शोभा पाने लगे ।
एक दिन राजा अश्वसेन अपनी राज सभा में बैठे हुए थे । इसी समय एक पुरुष वहां उपस्थित हो कहने लगा- "हे स्वामिन् ! यहांसे पश्चिम दिशामें कुशस्थल नामक एक नगर है। वहां कुछ दिन पहले नरवर्मा नामक राजा राज्य करता था । वह बड़ा हो सदाचारी सत्यवादी और धर्म-प्रवर्तक था। वह जिन धर्ममें अत्यन्त अनुरक्त होकर साधु-सेवामें तत्पर रहा करता था । बहुत दिनोंतक न्याय और नीतिपूर्वक प्रजापालन करनेके बाद अन्तमें उसने राजलक्ष्मीका त्याग कर दीक्षा ग्रहण कर ली । इसके बाद अब वहाँ उसका पुत्र प्रसेनजित् राज्य करता है । वह भी अर्थों जनोंके लिये सुरतरु रूप है । उसे प्रभावती नामक एक कन्या है । इस समय वह नवयौवन प्राप्त होनेके कारण देव कन्या सी प्रतीत हो रही है । राजाने उसे विवाह योग्य समझ, चारों ओर उसके लिये वरकी खोज करायो, किन्तु कहीं भी उसके उपयुक्त वर न मिल सका ।
एक बार वह राजकुमारी सखियोंके साथ उद्यानकोड़ा करने गयी थी । उस उस उसने किन्नरियोंके मुखसे पार्श्वकुमारका गुण-गान सुना । सुनते ही वह पार्श्वकुमार पर तन मनसे इस प्रकार लुब्ध हो गयी, कि उसने खेलना-कूदना सब कुछ त्याग कर दिया और व्याकुलताके कारण वहीं मूर्च्छित हो गिर पड़ी।