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* चतुर्थ सगे * "राजन् ! मेरे पद्मावती नामक एक पुत्री है। उसके सब मिलाकर एक हजार सखियां हैं। उन्होंने एक दूसरेका वियोग न हो इसलिये प्रतिज्ञा की है कि हम सब एक ही पतिसे विवाह करेंगी। यह बात सुनकर मैंने नैमित्तिकसे पूछा कि इनका पति कौन होगा ? तब नैमित्तिकने आपकी प्रशंसा करते हुए मुझसे बतलाया कि आप ही उनके पति होंगे। इसीलिये मैंने एक विद्याधरको आपका हरण कर लानेकी आज्ञा दी और श्वेत हाथीके रूपमें वह आपको हरणकर ले आया। अब आप इन सभी कुमारियोंका पाणिग्रहण कर मुझे कृतार्थ कीजिये।” ।
चन्द्रचूड़की यह बात सुन सुवर्णबाहुने सहर्ष उन कुमारियोंका पाणिग्रहण कर लिया। यह देखकर और भी अनेक विद्याधर लालायित हो उठे और उन्होंने भी अपनी अपनो कन्याका विवाह सुवर्णबाहुके साथ कर दिया। जब यह बात दक्षिण श्रेणाके अनेक विद्याधरोंको मालूम हुई तो उन्होंने भी इसका अनुकरण किया। इस प्रकार सब मिलाकर पांच हजार कन्याओंका :सुवर्णबाहुने वहां पाणिग्रहण किया। किसीने ठीक ही कहा है कि :--
“गुणैः स्थानच्युतस्यापि, जायते महिमा महान्।
अपि भ्रष्टं तरोः पुष्पं, जनैः शिरसि धायते ॥" अर्थात्-“स्थान भ्रष्ट होनेपर भी गुणोंके कारण महिमा ज्योंकी त्यों बनी रहती है। यही कारण है कि वृक्षसे नीचे गिर जानेपर भी पुष्पको लोग सिरपर चढ़ाते है।"
कुछ दिनोंके बाद विद्याधरोंसे विदा ग्रहणकर सुवर्णबाहुने