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* पार्श्वनाथ-चरित्र -
कुछ दिनोंके बाद प्राणत देवलोकमें उत्तम देव ऋद्धि भोगकर सुवर्णबाहुका जीव विशाखा नक्षत्रको कृष्ण चतुर्थीके दिन देव लोकसे च्यवन होकर मध्यरात्रिके समय वामादेवीकी कोखमें अवतीर्ण हुआ। उस समय वामादेवीने तीर्थंकरके जन्मको सूचित करनेवाले चौदह उत्तम स्वप्न देखे। वे स्वप्न इस प्रकार थे। गजेन्द्र, वृषभ,सिंह, लक्ष्मी, माला, चन्द्र, सूर्य, ध्वज, कुम्भ, सरोवर, समुद्र, विमान, रत्न राशि और अग्नि । यह स्वप्न देखतेही रानीकी निद्रा भङ्ग हो गयी। उसने जागृत हो, इन स्वप्नोंका हाल राजाको कह सुनाया। राजाने सवेरा होते ही स्वप्न पाठकोंको बुलाकर इन स्वप्नोंका फल पूछा। स्वप्न पाठकोंने विचार कर कहा-"राजन् ! हमारे शास्त्रमें बहत्तर स्वप्नोंका वर्णन हैं । उनमें तीस स्वप्न उत्तम कहे गये हैं। उन्हींमेंसे यह चौदह स्वप्न रानीने देखे हैं। गर्भमें तीर्थंकर किंवा चक्रवर्ती होने पर ही इन स्वप्नोंको उसकी माता देखती है इसलिये वामादेवीने यह जो चौदह स्वप्न देखे हैं इससे प्रतोत होता है, कि रानी जिस पुत्रको जन्म देंगो, वह तथंकर होगा या चक्रवर्ती होगा।” स्वप्नका यह फल सुनकर राजाको अत्यन्त आनन्द हुआ। उसने स्वप्न पाठकोंको विपुल धन और वस्त्रादि दे विदा किया। जब यह समाचार रानीने सुना तो वह भी अत्यन्त प्रसन्न हुई। ___ इस गर्भके प्रभावसे कुवेरने देवताओंको अश्वसेन राजाकी राजलक्ष्मी बढ़ानेका आदेश दिया, फलतः राजाका धन इतना अधिक बढ़ने लगा, कि चाहे जितना खर्च करनेपर भी उसमें कमी