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* पार्श्वनाथ-चरित्र -
देवताओंको तीर्थकरके जन्मको सूचना दी । यह सूचना मिलतेही सभी देव वहां इकट्ठे हुए । इन्द्रकी आज्ञासे पालक नामक देवताने पालक नामक विमानका रूप धारण किया। इस विमानमें बैठकर देवताओं समेत इन्द्र नन्दीश्वर द्वोपमें आये। और उस लक्ष योजनके विस्तृत विमानको संकुचित कर जिनेश्वदेवरके जन्म गृहमें पहुंचे। यहां जिनेन्द्र और जिन माताको नमस्कार कर वे कहने लगे-“हे रत्न धारिणो ! हे शुभ लक्षण वाली जगन्माता! आपको नमस्कार है। आपने त्रिभुवनमें धर्म-मार्गको प्रकाशित करनेवाले, दिव्य रत्नके प्रदीपरूप इन जिनेश्वर भगवानको जन्म देकर हम उपकार किया है ।मैं शक्रेन्द्र हूं और भगवानका जन्मोत्सव मनाने आया हूँ।" यह कहते हुए इन्द्रने बामादेवीको अवस्वापिनी निद्रामें डाल, उनके पास भगवानका प्रतिबिम्ब रख दिया। इसके बाद इन्द्रने पांच रूप धारण किये। एक रूपसे उन्होंने अंजलीमें भगवानको उठा लिया। दो रूपसे उनके दोनों ओर चमर डुलाने लगे। एक रूपसे प्रभुके सिरपर छत्र धारण किया और एक रूपसे वज घुमाते हुए जिन भगवानके आगे चलने लगे। इस प्रकार प्रभुको लेकर वे देवताओं समेत आकाश मार्गसे शोघही ही मेरुपर्वतपर जा पहुंचे। यहां पांडुक वनमें पांडुकबल नामक शिलापर भगवानको स्नान करानेके लिये प्रभुको गोदीमें लेकर वह पूर्वाभिमुख बैठे। उस समय और भी ६२ इन्द्र अवधिज्ञानसे जिन भगवानके जन्मका हाल जानकर वहां उपस्थित हुए। सब मिलाकर वैमानिकके दस, भुवनाधिपके बोस, व्यंतरके बत्तीस और