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* पार्श्वनाथ चरित्र *
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रहनेवाली आठ दिक्कुमारियोंने पानी बरसाकर एक योजन प्रमाण भूमि सींच कर वहां पुष्पवृष्टि की। इसके बाद जिनेश्वर और जिन माताको नमस्कार कर वे नाना प्रकारके मंगलगान गाने लगी। इसके बाद नंदोत्तरा, नंदा, सुनंदा, नंदिवधिनी, विजया, वैजयन्ती, जयंती और अपराजिता इन आठ दिक्कुमारियोंने पूर्व रुवकसे वहां आकर जिनेश्वर और जिन-जननीको नमस्कार किया और हाथमें दर्पण लेकर उनके पास खड़ी हो गयीं। इसके बाद समाहारा, सुप्रदत्ता, सुप्रबुद्धा, यशोधरा, लक्ष्मीवती, शेषवती, चित्रगुप्ता और वसुन्धरा - यह दक्षिण रुचककी आठ दिक्कुमारियां उपस्थित हुई और हाथमें कलश लेकर खड़ी हो गयीं। इसके बाद इलादेवी, सुरादेवी, पृथ्वी, पद्मावती, एकनासा, नवमिका, भद्रा और सीता यह पश्चिम रुचककी आठ कुमारियां उपस्थित हुई और जिनेश्वर तथा जिन माताको प्रणाम कर हाथमें पंखा लेकर खड़ी हो गयीं। इसके बाद अलम्बुसा, अमितकेशी, पुण्डरीका, वारुणी, हासा, सर्वप्रभा, श्री और ह्री - यह आठ कुमारियां उत्तर रुचकसे आकर हाथमें चामर लेकर खड़ी हो गयीं। इसके बाद विवित्रा, चित्रकनका, तारा और सौदामिनी यह बार दिक्कुमारियां विदिशा स्थित रुवक पर्वतसे आकर उपस्थित हुई और हाथमें दीपक लेकर खड़ी हो गयीं। इसके बाद रूपा, रूपासिका, सुरूपा, कावती इन चार दिक्कुमारियोंने रुचक द्वोपसे आकर जिनेश्वरके नाभि-नालको चार अंगुल छोड़कर काट दिया और भूमिमें एक
और रूप