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पञ्चम सर्ग।
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दसवाँ भव। सिंहका जीव नरक और तिर्यंच योनिके विविध दुःखोंको सहन करता हुआ किसी संनिवेशमें ब्राह्मणका पुत्र हुआ। कर्म वशात् बाल्यावस्थामें ही उसके माता पिताका शरीरान्त हो गया। इसलिये लोगोंने उसे अनाथ समझकर उसका पालन किया और उसका नाम कमठ रखा। क्रमशः बाल्यावस्था पूर्ण होनेपर उसने यौवन प्राप्त किया तब वह स्वयं भीख मांगने लगा; किन्तु घर घर भटकने पर भी उसे पेट भर खानेके लिये भोजन भी नहीं मिलता था । इसलिये वह बहुत दुःखी रहता, और पर धन देखकर मन-हीमन सोचता कि कर्मने मुझे बहुत दुःख दिया, किन्तु क्या किया जाय ? ब्रह्माको जिसने कुम्हारकी तरह ब्रह्माण्ड रूपी पात्र बना. नेमें लगाया। विष्णुको बारंबार अवतार लेनेके संकट में फंसाया, महादेवको हाथमें खोपड़ी लेकर भिक्षाटन कराया और सूर्यको सदा आकाशमें भ्रमण करते रहनेके काममें लगाया, ऐसे कर्मको बारम्बार नमस्कार है।