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* चतुर्थ सर्ग* इनके भी दो दो प्रकार है-देव सम्बन्धी और गुरू सम्बन्धी। इनका विशेष विवरण इस प्रकार है___ (१) हरि, हर, ब्रह्मादिकके मन्दिरमें जाना, उनको नमस्कार करना या उनकी पूजा करना (२) किसी कार्यके आरम्भमें या दूकान आदिमें प्रवेश करते समय लाभके लिये गणपति आदिका नाम लेना या उनकी पूजा करना (३) चन्द्र और रोहिणीके गीत गाना (४) विवाहादिमें गणपतिकी स्थापना करना (५) पुत्र जन्मादिमें छठाके दिन षष्ठी देवताका पूजनादि करना (६) विवाहादिमें मातृकाओंकी स्थापना करना (७) चंडिका आदिकी मानवायें मानना (८) तुला आदि राशिग्रहोंका पूजन करना (8) चन्द्र और सूर्य ग्रहण किंवा व्यतीपातादिकमें विशेषता पूर्वक स्नान, दान और पूजनादिक करना (१०) पितृओंको पिण्डदान करना (११) रेवन्त पथ देवताका पूजन करना (१२) कृषिकार्यका समारंभ करते समय हल किंवा सीताका पूजन करना (१३) पुत्रादिकका जन्म होनेपर देवियोंको भेंट आदि चढ़ाना (१४) सुनहले,या रंगीन वस्त्र पहनते समय देवता विशेषका पूजन या भेंट इत्यादि करना (१५) मृतकके निमित्त जलाञ्जलि, तिल, कुश, और जलकुम्भ आदि देना (१६) नदी और तीर्थादिकमें मृतकका अग्निसंस्कार करना ( १७ ) मृत्तकके निमित्त शैया आदिका दोन देना (१८) धर्मार्थ पूर्व पत्नी ( सौत ) या पूर्वजनोंके निमित्त मूर्ति बनवाना (१६) भूतोंको बलीदान देना (१०) बारहवें दिन, एक मास, छः मास या वर्ष भरमें श्राद्ध करना (२१) प्याऊ बैठाना (२२) कुमा