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* पार्श्वनाथ-चरित्र *
क्रीड़ा। कभी जलक्रीड़ामें अपना समय व्यतीत करता और कभी मल्लकोड़ामें । किसी दिन गाने-बजानेका रंग जमता। इसी तरह वह नाना प्रकारको वसन्तकोड़ामें अपना समय व्यतीत करताथा ।
एक दिन राजा जंगलमें अश्वकोड़ा कर रहा था, उस समय उसे जंगम रजतगिरिके समान श्वेत और चार दन्तोंसे युक्त गर्जना करता हुआ एक हाथी दिखायो दिया। उसे देखते हो राजाने पकड़नेके लिये उसका पोछा किया। ज्यों ज्यों हाथी भागता गया, त्योत्यों राजा भो उसके पीछे बढ़ता चला गया । अन्तमें हाथीके समीप पहुंचनेपर राजा उसकी पीठपर चढ़ बैठा। हाथीको यह मालूम होते ही वह आकाशमें उड़ने लगा। और वह उड़ते-उड़ते वैताढ्य गिरिपर पहुंचा। वहां एक नगरके बाहार उपवनमें राजाको उतार कर वह हाथो नगरमें चला गया। अनन्तर उसने उत्तर श्रेणीके मणिचूड़ राजाके निकट उपस्थित हो उसे शुभसंवाद सुनाते हुए कहा कि- "हे स्वामिन् ! मैं सुवर्णबाहु राजाको ले आया हूँ और नगरके बाहर एक उपवनमें उन्हें बैठाकर आया हूँ।" वास्तवमें वह हाथी नहीं किन्तु एक विद्याधर था। राजाने यह शुभसंवाद सुन उसे पुरस्कार देकर विदा किया और स्वयं विमानमें बैठकर सुवर्णबाहुके पास आया। वहां उसे नमस्कार कर उसने उससे नगरमें चलनेका अनुरोध किया। सुवर्ण बाहुने इसे तुरत स्वीकार कर लिया इसलिये वह बड़े समारोहके साथ उसे नगरमें ले आया। यहां भोजनादिसे निवृत्त होनेपर चन्द्रचूड़ने सुवर्णबाहुसे कहा