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* पाश्वनाथ चरित्र *
पद्मावती प्रभृति पांच हजार रानी और अनेक दास दासियोंके साथ अपने नगरके लिये प्रस्थान किया। इधर नगरनिवासी उसकी अनुपस्थिति के कारण अत्यन्त चिन्तित हो रहे थे। उसे इस प्रकार लौटते देख वे आनन्द से प्रफुल्लित हो उठे । अब सुवर्णबाहु पहलेसे भी अधिक प्रेमपूर्वक प्रजा पालन करने लगा । क्रमशः राज्य करते हुए सुवर्णबाहुको चौदह महारत्नोंकी प्राप्ति हुई। वे चौदह महारत्न यह हैं:-चक्र, चर्म, छत्र, दण्ड, खड्ग, काकिणीरत्न, मणि, गज, अश्व गृहपति, सेनापति, पुरोहित, वार्धकी और स्त्री । यह रत्न प्राप्त होनेपर राजाने बड़ी धूमधाम के साथ अट्ठाई महोत्सव किया । इसी समय से वह चक्रवर्ती कहलाने लगा ।
एक बार आयुधशाला मेंसे चक्ररत्न पूर्वदिशा की ओर चला, इसलिये चक्रवर्ती सैन्य भी उसके पीछे चला । चलते-चलते जब यह सेना समुद्र तटके मागध तीर्थके समीप पहुंची तब चक्रीने अट्टम तपकर मागधतीर्थेश्वरकी ओर एक बाण छोड़ा। राजसभा में बैठे हुए मागधतीर्थेश्वरने बाण देखकर कहा--" आज किसकी शामत आयी है, जो मुझपर यह बाण छोड़ रहा है ? किन्तु उसने जब बाण उठाकर देखा और उसपर चक्रवर्तीका नाम दिखायी दिया, तब वह शान्त हो गया । इसके बाद वह नजराना लेकर चक्रवर्तीकी सेवामें उपस्थित हुआ और उसे नमस्कार कर कहा कि - " मैं आपका सेवक हूँ ।" मागधतीर्थेश्वरकी यह बात सुन चक्रीने उसे छोड़ दिया और बादको धारणकर अठ्ठाई महोत्सव किया । यही चक्रवर्तीकी विधि है । इस प्रकार