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* पार्श्वनाथ चरित्र *
लालन करनेका समय है।" यह सुन राजाने कहा-"वत्स! दीक्षाके लिये अवस्था और समय देखना ठोक नहीं। इसलिये मेरे धर्मकार्यमें बाधा न डाल। जैसा पूर्वसे होता आया है, तुझे शासनभार ग्रहण कर मेरे इस कार्य में सहायता पहुंचानी चाहिये।"
पिताको यह बात सुन चक्रायुध चुप हो गया। अतएव वजनाभने इसे सम्मतिसूचक लक्षण समझ, उसे सिंहासनपर बैठा दिया। इसके बाद क्षेमंकर नामक तीर्थंकरके पास जाकर, उसने उनसे दीक्षा ग्रहण कर लो। इस प्रकार वज्रनाम मुनिने वाह्य राज्य का त्याग कर धर्मरूपी अन्तरंग राज्यका स्वीकार किया। अब विरतिरूपी उनकी पत्नी, संवेगरूयो, पुत्र, विवेकरूपी मन्त्री, विनयबपी, घोड़ा आर्जवरूपी, पट्ट हस्ती, शीलांग रूपी रथ, शमदमादिक रूपी सेवक, सम्यक्त्व रूपी महल, सन्तोष रूपी सिंहासन, यश रूपी विस्तृत छत्र और धर्म-ध्यान तथा शुक्लध्यान रूपी उनके दो बमर थे। इस प्रकार बहुत दिनोंतक अंतरंग राज्यका पालन करने के बाद गुरुकी आज्ञासे वे एकल विहारी और प्रतिमाधारी हुए। इसके बाद वे दुस्तप करने लगे। तपके प्रभावले उन्हें आकाश गमनको लब्धि प्राप्त हुई। अनन्तर एफ बार विहारके समय भाफाश गमन करते हुए वे सुफच्छ नामक विजपमें जा पहुंचे।
इधर उस सपेका जीव नरकसे निकल कर भव-भ्रमण करता हुआ सुकन्छ विजयके ज्वलनाद्रि पर्वतपर कुरंगक नामक एक भील हुआ। वह पापका मूर्तिमान पिण्ड था। उसकी आंखें