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* तृतीय सर्ग*
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इस प्रकार यह बाईस अभक्ष्य वर्जनीय बतलाये गये हैं। अब हमलोग बत्तीस अनन्तकायके सम्बन्धमें विचार करेंगे।
(१) सूरन (२) वज्रकन्द (३) आर्द्रहरिद्रा (४) अदरख (५) हरा कचूर ( ६ ) शतावरि (७) बिरालिका (८) घृतकुमारी (6) थूहड़ (१०) गुडूची (११) लहसुन (१२) वंशकरेला (१३) गाजर (१४) लवणिक (१५) पहिनी कन्द (१६) गिरिकर्णिका (१७) किसलय पत्र (१८) खरिंशुका (१६) थेग (२०) आर्द्रमुस्ता (२१) म्रामर बृक्षकी छाल (२२) खिल्लोहड़ा (२३) अमृतवल्ली (२४) मूली (२५) भूमिस्फोटक (२६) द्विदल अन्नके अंकुर (२७) ढंकवत्थुल (२८) सूकरवल्ल (२६) पलांकी (३०) कोमल इमली (३१) आलू और (३२) पिण्डालू । अनन्त कायके यह प्रधान भेद हैं। लक्षणानुसार और भी अनेक पदार्थ अनन्तकायमें परिगणित किये जा सकते हैं।
इनमें से सूरन जिमीकन्दका एक प्रसिद्ध कन्द है। वज्रकन्द भी एक प्रकारका कन्द है। आर्द्रहरिद्रा हरी हल्दीको कहते हैं। अदरख अपने नामसे ही प्रसिद्ध है। कचूर, शतावरि और बिरालिकाको बेल या वल्लरियाँ होती हैं। धृतकुमारी घिकवारको कहते हैं। थूहर एक कँटीला वृक्ष होता है । गुडूची गुर्चके नामसे प्रसिद्ध है, यह भी एक तरहकी बेल है और दवाके काममें आती है। लहसुनका परिचय देना व्यर्थ है । वंशकरेला एक फल है। गाजर एक कन्द है। लवणिक एक प्रकारकी वनस्पती है। इसे जलानेसे एक तरहका क्षार तैयार होता है। पद्मिनीकन्द एक प्रकारका कन्द है । गिरिकर्णिका एक प्रकारकी बेल होती है। आमुस्ता
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