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* तृतीय सर्ग * “समझाया और कहा- "हे वत्स! न तो तूने कभी मेरी बात मानी है, न मेरे वचनोंपर तुझे विश्वासही है,किन्तु फिर भी मैं तुझे एक श्लोक बतलाता हूँ। आशा है कि तद्नुसार आचरण कर तू मेरी अन्तिम आशा पूर्ण करेगा।” यह सुन प्रभाकरने कहा--"अच्छा कहिये, मैं आपको यह अन्तिम इच्छा अवश्य पूर्ण करूंगा।" तब उसने प्रसन्न होकर कहा-"वत्स! ध्यानापूर्वक सुन । वह श्लोक यह है :--
___ "कृतज्ञ स्वामि-संसर्ग-मुत्तम स्त्री परिग्रहम् ।
कुर्वन्मित्रमलोभं च, नरो नैवावसोदति ॥" अर्थात्-“कृतज्ञ स्वामीकी सेवा करनेसे, उत्तम कुलीन स्त्रीके साथ शादी करनेसे और निर्लोभी मनुष्यको मित्रता करनेसे मनुष्यको कभी दुःखी नहीं होना पड़ता है।
पिताके मुंहसे यह श्लोक सुन, प्रभाकर उसी समय जूआ खेलने चला गया। इधर उसके पिताने आनन्दपूर्वक अपना प्राण त्याग दिया। इसके बाद तुरत हो प्रभाकरका एक मित्र उसे यह खबर देने दौड़ा। उसने प्रभाकरसे जाकर कहा-“प्रभाकर ! तेरे पिताका देहान्त हो गया है !” यह सुन प्रभाकरने जूआ खेलते ही खेलते उत्तर दिया कि देहान्त हो गया है, तो मैं चलकर क्या करूंगा। तुम्हीं जाकर सब व्यवस्था कर दो। अन्तमें मित्रके बहुत समझानेपर वह उठा और घर आकर पिताके अग्निसंस्कारकी व्यवस्था की।
पिताकी उत्तर क्रियासे निवृत्त होनेपर प्रभाकर पिताके बतलाये हुए श्लोकका अर्थ सोचने लगा। अर्थ समझमें आनेपर