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* पार्श्वनाथ चरित्र #
पूछा - " आप कौन हैं और कहां जा रहे हैं ? यहां किस उद्देशसे आपका आगमन हुआ है ?” प्रभाकरने कहा- “मैं देशाटन करनेके लिये बाहर निकला हूँ और अनायास ही भ्रमण करता हुआ यहां आ पहुँचा हूँ ।" राजकुमारने कहा - "यदि आपको कोई आपत्ति न हो, तो आप मेरे पास रह सकते हैं।” राजकुमारकी यह बात सुन प्रभाकरने वहां रहना स्वीकार कर लिया। अब दोनों जन वहांसे उठकर नगरमें गये और मित्रकी तरह रहने लगे ।
प्रभाकर मन-ही-मन राजकुमारके चातुर्य और उसके मधुर वचनोंपर मुग्ध हो रहा था । वह अपने मनमें कहने लगा"युवावस्था होनेपर भी राजकुमारमें कितना गांभिर्य है, कितना ज्ञान है ! किसीने ठीक ही कहा है कि द्राक्षकी तरह अनेक मनुष्य बाल्यवस्था से ही मधुर सर्व गुण सम्पन्न होते हैं । अनेक मनुष्य आम्र फलकी तरह परिपक्व होनेपर ही मधुर होते हैं और अनेक मनुष्यों में इन्द्रायणके फलोंको भांति कभी माधुर्य आता ही नहीं। कहा है कि :
“प्राकृतौ हि गुणा नुन, सत्यी भूत मिदं वचः । यस्यैव दर्शने नापि, नेत्र च सफली भवेत् ॥”
अर्थात् - " आकृतिमें ही गुण रहते हैं, यह बात बिलकुल ठीक है; क्योंकि उसके दर्शन मात्रसे नेत्र सफल हो जाते हैं ।” इसलिये अब इसकी सेवा कर कुस्वामीके संगसे दोष रूपी जो मैल लगा है, उसे धो डालना चाहिये । यह सोचकर प्रभाकर राजकुमारकी सेवा करने लगा और उसके दिये हुए निवासस्थानमें आनन्द