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* तृतीय सर्ग*
२६६ पूर्वक रहने लगा। कुछ दिनोंके बाद वहीं उसने सुप्रभा नामक एक स्त्रोसे विवाह कर लिया। सुप्रभाकी प्रकृति बहुत ही उत्तम
और उसका स्वभाव शान्त, गंभीर और विनयशील था। इसी प्रकार उसने वसन्त नामक एक वणिकको अपना मित्र बनाया। यह वणिक भी एक बहुत बड़ा व्यापारी था। और बड़ाहो दयालु, परोपकारी सज्जन पुरुष था। इस प्रकार यहां अपने पिताके आदेशानुसार तीनों अनुकूल उपकरण जुटाकर वह सानन्द जीवन व्यतीत करने लगा।
कुछ दिनोंके बाद राजाको मृत्यु होनेपर गुणसुन्दर सिंहासनारूढ़ हुआ। अब गुणसुन्दरने शासनको बागडोर हाथमें आते ही प्रभाकरको अपना मन्त्री बनाया। इस प्रकार वे दोनों राजा और मन्त्रीके रूपमें प्रजाका पालन करने लगे। कुछ दिनोंके बाद राजाको किसाने दो घोड़े भेट दिये। यह घोड़े सभी सुलक्षणोंसे युक्त और बहुत ही बढ़िया थे; किन्तु इन्हें शिक्षा अच्छी न मिली थी। राजाने गुण जाने बिना ही एक दिन एक घोड़ेपर स्वयं सवारी की और दूसरे घोड़ेपर प्रभाकरको बैठनेको आज्ञा दी। इसके बाद अनेक अनुचरोंको, साथ ले वे दोनों जन सैर करनेके लिये बाहर निकले। नगरके बाहर पहुँचने पर गुणसुन्दर और प्रभाकरने घोड़ोंकी चाल देखनेके लिये उन्हें कसकर दो दो चाबुक लगाये। चाबुक पड़ते ही दोनों घोड़े आग बबूले हो गये और एक ओरको बेतहाशा भागे।
अश्वोंको इस तरह भगते देख राजाने अपने अनुचरोंको पुकार